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बंदरों के उत्पात से क्षेत्रवासी हो रहे परेशान

 बंदरों  के उत्पात से क्षेत्रवासी हो रहे परेशान 



        बांकेगंज खीरी

  श्री न्यूज़ 24 दैनिक अदिति  समाचार पत्र


संवाददाता रमेश कुमार चौहान


विकासखंड बांकेगंज की ग्राम पंचायत ग्रंट नंबर 10 में बंदरों के उत्पात से दुकानदार, किसान तथा महिलाएं सभी परेशान हैं। महिलाओं के लिए घर में खाना बनाना भी कठिन हो गया है। महिलाएं अपने रसोई घर का दरवाजा बंद करके खाना बनाने को विवश हो गई है क्योंकि घरों की छत पर बैठे बन्दर मौका मिलते ही उनके सामने से ही रोटियां उठाकर भाग जाते हैं, रोटी न मिली तो किचन में रखी सब्जी या अन्य सामान उठाकर भाग जाते हैं। महिलाएं भय के कारण चीखने चिल्लाने के आलावा कुछ नहीं कर पाती हैं।  मौका मिलते ही यही बंदर दुकानदारों के सामने से ही कभी ब्रेड का पैकेट तो कभी चिप्स और नमकीन के पैकेटों की लड़ियां उठाकर भाग जाते हैं। अब तो बंदर आलू और मटर जैसी सब्जियों को भी नुकसान पहुंचने लगे हैं। मैलानी रेंजर बंदर छोड़ने की अनुमति उच्च अधिकारियों के हाथ में देने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसे में क्षेत्र वासियों को इस समस्या का कोई समाधान नहीं दिखाई देता है। भूतेंद्र सिंह सहित कई ग्रामीण चंदा लगाकर बंदरों को पकड़वाने की बात कह रहे हैं परंतु वन विभाग की अनुमति मिले बिना उन्हें जंगलों में बंदर छोड़ने से कानूनी पचड़े का भय भी सता रहा है। उनका कहना है कि यदि विभाग अनुमति दे दे तो हम सभी स्वयं बंदरों को पकड़वाकर जंगल में छुड़वा देंगे। बांकेगंज निवासी भूतेन्द्र सिंह ने बताया कि पिछले वर्ष से अधिकांश बंदर जंगल से बाहर आ चुके हैं। उन्हें जब खाने को कुछ भी नहीं मिलता है तब वे खेतों में बोए गए आलू को उखाड़ कर खाने लगते हैं। मेरा करीब एक बीघे आलू उन्होंने उखाड़ दिया है। मौका मिलते ही घरों से भी खाने पीने का सामान उठा ले जाते हैं। इससे सभी क्षेत्रवासी परेशान है। फसल बचाने के चक्कर में दो बार बन्दर काट भी चुका है। यदि ग्रामीण आपसी सहयोग से बंदरों को पड़कर जंगल में छोड़ने का प्रयास करें तब भी वन विभाग समस्या उत्पन्न करेगा। बांकेगंज बाजार में दुकान कर रहे रमेश कुमार बताते हैं कि भोजन की व्यवस्था सरलता से न हो पाने के कारण गांव में डेरा जमाए बंदरों के व्यवहार में परिवर्तन आता जा रहा है। अब वे दुकानदारों के सामने से सामान बिना किसी डर के उठा ले जाते हैं। जब तक दुकानदार डंडा लेकर हट हट चिल्लाते हुए बाहर निकलता है तब तक वे उछल कर दुकान की छत अथवा टीन पर चढ़ चुके होते हैं और सामान बर्बाद कर चुके होते हैं। कई लोग तो उनसे सामान बचाने के लिए गुलेल तक रखने लगे हैं। छुट्टा पशुओं की तरह उन्हें भी कई बार कूड़े के देर में पड़ी पॉलीथीन में खाने का सामान ढूंढते हुए देखा जाए सकता है। मैलानी रेंजर साजिद हसन ने बताया कि बंदरों की समस्या से निजात दिलाने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम की है। यदि इनमें से कोई बंदरों को पड़कर जंगल में छोड़ना चाहे तो उसके लिए सबसे पहले डीएफओ से परमिशन लेनी होगी उनकी अनुमति के बाद ही बंदरों को जंगल में छोड़ा जा सकता है।

 एडीओ पंचायत आरिफ खान ने बताया कि बंदरों की समस्या से मै भी अनजान नहीं हूं परंतु ग्राम प्रधान केवल कुछ आदमियों को लगाकर बंदरों को जंगल की ओर भागने का प्रयास ही करा सकता है क्योंकि यदि इन्हें प्रशिक्षित आदमी लगाकर पकड़वाया भी जाए तो वन विभाग जंगल के अंदर उन्हें छोड़ने नहीं देता है। ऐसे में ग्राम पंचायतों के पास कोई अन्य समाधान भी नहीं है।

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