ग्रामीण अंचलों में बेरोजगारी का संकट: “हरित क्रांति से भूख हड़ताल
ग्रामीण अंचलों में बेरोजगारी का संकट: “हरित क्रांति से भूख हड़ताल
मुंबई:महाराष्ट्र के ग्रामीण अंचलों में बेरोजगारी की समस्या तेजी से विकराल रूप धारण कर रही है। एक समय हरित क्रांति के कारण समृद्ध माने जाने वाले ये इलाके अब बेरोजगारी और आर्थिक असुरक्षा की मार झेल रहे हैं। नौकरियों की कमी और कृषि पर अत्यधिक निर्भरता ने इन क्षेत्रों के युवाओं को निराशा की अंधेरी खाई में धकेल दिया है। युवाओं के हाथ में हल की जगह मोबाइल आ गया है, लेकिन उसे रोजगार में तब्दील करने की दिशा अब भी अधूरी है
महाराष्ट्र के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले कृषि क्षेत्र में संकट गहराता जा रहा है। वर्षों से किसानों पर मौसम की अनिश्चितता, जल संकट और बाजार की कम कीमतों का दबाव बढ़ता जा रहा है। यह संकट न केवल किसानों की आय पर असर डाल रहा है, बल्कि युवाओं के रोजगार के अवसरों को भी कम कर रहा है। अब हालात यह हैं कि युवा खेतों में काम करने के बजाय मोबाइल पर कृषि से संबंधित वीडियो देखकर ही संतुष्ट हो रहे हैं।
एक किसान ने व्यंग्य करते हुए कहा, "अब खेती पर निर्भर रहना वैसा ही है, जैसे बारिश पर निर्भर रहना—कभी आएगी, कभी नहीं। अगर बारिश नहीं आई, तो मोदी जी का भाषण तो सुनने के लिए हमेशा तैयार हैं।" इन दिनों किसान सोशल मीडिया पर कृषि तकनीकों का ज्ञान बटोर रहे हैं, लेकिन असल जीवन में उन्हें फसलों से उम्मीदें कम ही रह गई हैं।
सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का उद्देश्य युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना है, लेकिन इन योजनाओं का असल असर जमीनी स्तर पर नदारद है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना हो या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA), इनका प्रभाव बिल्कुल वैसा ही दिख रहा है जैसे टूटी छत से बारिश का बचाव। योजनाओं के लाभार्थियों की लिस्ट लंबी हो सकती है, लेकिन युवाओं के हाथों में अब भी रोजगार की स्थिरता नहीं दिख रही है।
युवाओं के भीतर कौशल विकास की बात सुनकर मानो 'आइंस्टाइन' जाग जाता है, लेकिन असलियत यह है कि स्किल्स डेवलप करने की प्रक्रिया अब इतनी जटिल और अपारदर्शी हो गई है कि यह योजना भी कागजों में ही रह गई है। ग्रामीण युवाओं का मानना है कि सरकारी योजनाओं से नौकरी पाने का सपना देखना अब उतना ही कठिन हो गया है जितना रेत पर गुलाब उगाना।
शहरों की ओर रोजगार की तलाश में जाने वाले ग्रामीण युवाओं की स्थिति भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। उन्हें लगता है कि वे शहरों में जाकर बॉलीवुड के हीरो की तरह जीवन जीने का सपना पूरा करेंगे, लेकिन यह सपना उनकी जेबों की हालत देखकर टूट जाता है। शहरों में मजदूरी या ठेके के काम में रोजगार तो मिल जाता है, लेकिन वेतन इतना कम होता है कि महीने के अंत तक खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है।
इस निराशा के चलते, कई युवा अब खुद को प्रेरित रखने के लिए "प्रेरणादायक वीडियो" और "मोटिवेशनल स्पीच" सुनने लगे हैं। वे इस उम्मीद में रहते हैं कि शायद किसी दिन उन्हें सही दिशा मिल जाएगी। लेकिन रोजगार की किल्लत और आर्थिक असुरक्षा ने उनके आत्मविश्वास को झकझोर कर रख दिया है।
इस विकट परिस्थिति में,मुंबई विभागीय (एनसीपी) के मुंबई मीडिया समन्वयक राजेश शर्मा ने युवाओं के लिए नए और ठोस सुझाव दिए हैं। उनका मानना है कि केवल सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहने के बजाय युवाओं को लघु उद्योगों की ओर आकर्षित करना चाहिए। इससे न केवल रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी।
राजेश शर्मा ने सुझाव दिया कि छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को विशेष प्रोत्साहन योजनाएं लानी चाहिए। उन्होंने कहा, "कुटीर उद्योगों के लिए लोन की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा, ताकि युवा अपने गांव में ही रोजगार उत्पन्न कर सकें और शहरों में पलायन से बच सकें।"
लेकिन समस्या यह है कि युवाओं के पास उद्योग खोलने के लिए पूंजी की कमी है, और सरकार के नारे भी केवल कागजों तक सीमित हो गए हैं। सरकारी योजनाओं के नाम पर ‘बेरोजगारी भगाओ’ जैसे नारे जरूर गूंज रहे हैं, लेकिन इनका असर अब तक नहीं दिखा है।
राजेश शर्मा का कहना है कि बेरोजगारी के इस संकट का समाधान केवल सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं हो सकता। निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना जरूरी है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में निवेश करने से रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकते हैं। कंपनियों को ग्रामीण इलाकों में भी अपनी फैक्ट्रियां और उद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
उनका मानना है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने हमेशा कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने की बात की है। पवार का मानना है कि किसानों को सिंचाई की बेहतर सुविधाएं, कृषि उत्पादों के लिए उचित मूल्य समर्थन और कर्ज योजनाओं का लाभ देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान सरकार का कृषि और किसान विरोधी रवैया इस संकट को और गहरा कर रहा है।
महाराष्ट्र के ग्रामीण अंचलों में बेरोजगारी की समस्या केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही है। रोजगार के अभाव में युवा मानसिक तनाव, निराशा और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार, नीति-निर्माता और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा। तभी युवा पीढ़ी को एक स्थायी और सुरक्षित भविष्य मिल सकेगा।
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