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25 साल बाद होली के बाजार से चीनी गायब ,स्वदेशी की छाप

 25 साल बाद होली के बाजार से चीनी गायब ,स्वदेशी की छाप



जिला संवाददाता दलबहादुर पांडेय अयोध्या


कानपुर25 साल बाद  पहली बार पिचकारी डैगन के पंजों से आजाद हुई है। बाजार स्वदेशी पिचकिरियों से पटा है। चीन से इसका आयात पांच फीसदी भी नहीं हुआ । इससे पहले 450 करोड़ रुपये की पिचकारिया चीनी से आयात होती थी । जो इस बार 25 करोड़ रुपये की भी नहीं रही ।

1992 में दुनिया के लिए भारतीय बाजार खुले। 1996 से चीन अपने उत्पादों से यहां के बाजारों को पाटने शुरू कर दिए। इसमें पिचकारियां भी थी। 2019 तक चीन की पिचकारियां यहाँ  तक बिकी । पंचानवे फीसदी से बाजार से ।


ड्रैगन  का कब्जा हो गया था कोरोना की वजह से आयात  बाधित हुआ कंटनेरो की कमी से कंटेनर ओं की कमी से 25 गुना  भाडा़ बढ़ गया  । कस्टम नियम सख्त होने के कारण  कीमतों  का खेल रुक गया। आसार ए हुआ की चीन से पिचकारियां मंगाने की रफ्तार पर ब्रेक लग गया। कानपुर से दिल्ली तक पिचकारी के निर्माता पैदा हो गये । महज हम 2 साल में हम पिचकारी  मेंआत्मनिर्भर हो  गए।  कानपुर में 16 मई नई फैक्ट्रियां दिल्ली में एनसीआर में 275 से ज्यादा इकाइयां बढ़कर एक से बढ़कर पिचकारिया मना रही है  यूपी-= दिल्ली  एनसीआर में 400  करोड़ रुपए की पिचकारी का उत्पादन किया गया इस बार होली में  किया गया है।

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