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स्वतंत्रता दिवस के हर्ष में विभाजन की विभीषिका का भी स्मरण रहे

 स्वतंत्रता दिवस के हर्ष में विभाजन की विभीषिका का भी स्मरण रहे



लेख प्रोफेसर आर एन त्रिपाठी

समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी


आप सभी को 78वें स्वतंत्रता दिवस की अनन्त शुभकामनाएं हम आप भाग्यशाली हैं कि आज भारत दुनिया का तीसरी अर्थव्यवस्था बनने को तत्पर है और संसार की सबसे बड़ी आबादी का भरण पोषण कर रहा है।यद्यपि भारत का क्षेत्रफल पूरी दुनिया के क्षेत्रफल का 2.3 प्रतिशत ही है परंतु 18% आबादी का हम भरण पोषण करते हुए भी अनाज का निर्यात भी कर रहे हैं। आज हमें एक विश्वासपात्र मित्र के रूप में पूरी दुनिया देखती है,चूकिं दुनिया के सबसे बड़े बाजार हम हैं इसलिए जितने भी दुनिया के महाशक्ति के ध्रुव हैं वह सब भारत से मित्रता बढ़ाना चाहते हैं। इस हर्ष में यह भी  विचारणीय है कि विभाजन की विभीषिका अभी समाप्त नहीं हुई।विभीषिका शब्द के अन्तः में 'वीभत्स' शब्द है जिसका  अर्थ कोई ऐसा दृश्य जिस दृश्य में वीभत्स स्थित हो, जो दृश्य  देखने सुनने में भयानक हो, जो दृश्य आंखों से देखा ना जा सके उसे वीभत्स कहते हैं और इसी वीभत्स  शब्द से विभीशिका शब्द बना हुआ है। हम जब विभाजन के विभिन्न समयों के इतिहास पर ध्यान दें जिसके बारे में आप लोगों ने बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा सुना होगा तब रूह कांप गयी होगी, केवल उसे सुनकर परंतु कभी आपने सोचा कि क्या ऐसा आपके सामने होगा तो आप क्या कर पाएंगे। 

आज हमारा वही भारत है जो 1876 में 83 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था और आज 50 लाख वर्ग किलोमीटर कम हो करके अब 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर में है हमारे ही हृदय का टुकड़ा अभी आपने देखा बांग्लादेश में जो स्थिति हुई है पुनः टूटने की स्थिति कही जा सकती है, पाकिस्तान में भी इस प्रकार टूटन चल रहा है,जो मूलत भारत का ही अंश था,उस पर हम विचार करें तो पाएंगे कि कितना विराट भारत था और भारत ने विभाजन की कितनी बड़ी कुर्बानी टूट टूट कर दी है। 1876 के बाद भारत के सात बंटवारे हुए 1876 में अफगानिस्तान बना 1906 में भारत से भूटान टूटकर के अलग बना,1935 में लंका बना 1937 में बर्मा बना इसी प्रकार हम देखते हैं को 1947 में पाकिस्तान बना और फिर वहां भी टूटन हुई और 1971 में बांग्लादेश बना आप देखिए यह वही भारत है जो अखंड भारत जिसकी कल्पना की जा सकती है इसके बारे में हम सोच रहे हैं हमारे यहां जो ऋग्वेद में मंत्र आता है वही  'जम्मू दीपेभारतवर्षे आर्यावर्त देशांतरगते' की बात कही जाती है जम्मू दीप का मतलब हुआ है कि जो चारों ओर से खारे पानी से घिरा हो और भारत खंड उसके अंदर था आर्यावर्त उसके अंदर था जम्मू दीप के चार भाग थे एक जो है वह आनर्त' था दूसरा ब्रह्मावर्त'तथा तीसरा आर्यावर्त था और चौथा परावर्त तथा यह आनर्त जो है नर्मदा से नीचे समुद्र तक था और यह ब्रह्मवर्त है जो नर्मदा से गंगा के बीच का है और आर्यावर्त गंगा से हिमालय काशी इत्यादि आर्यावर्त में ही आती है जिसपर हम आप हैं,परावर्त जो था वह पारस है सिकंदर जिसे कहा कि  वह जीता है वही ईरान और इराक  बना जब हम ध्यान से देखें तो हम पाएंगे कि आर्यवृत एकऐसा भाग है जहां राम,कृष्ण, बुद्ध, कबीर,सूर तुलसी ,रविदास से लेकर तमाम सुधारक पैदा हुए संपूर्ण क्षेत्र की कृषि उत्पादन का अधिकतम उत्पादन यहीं से होता है भाषा संस्कृति और शास्त्र का विकास भी यही से हुआ और संपूर्ण विश्व को जो ज्ञान विज्ञान दिया गया वह भारत के इसी क्षेत्र से ही दिया गया सारी गणना विज्ञान की देन भारत है और यह सब यहीं से प्राप्त हुआ है। आर्यावर्त गंगा से हिमालय पर्वत की श्रेणी में था और आज यहां भी जान लेना  आवश्यक है कि विभाजन की विभीषिका ने हमारी हिमालय की जो चोटी जिसे तथाकथित आज हम एवरेस्ट कहते हैं यह 'गौरी शंकर' थी और जब अलग हुआ तो विभाजन की वि भिषिका से यह अब हमारे देश में भी नहीं है।

आलेख का आशय है कि पुनः हम इस  विभीषिका से कैसे बचे रहें और कैसे देश को सुदृढ़ बनाएं तो इस पर विचार करने के लिए हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि मौजूदा विश्व जो है वह बहुसंस्कृतिवाद और विश्वबंधुत्ववाद की तरफ बढ़ रहा है प्रत्येक सत्ता की अपनी नैतिकता तभी तक कायम रहती है जब उसके नेतृत्व द्वारा किसी भी प्रकार का खतरा न महसूस किया जाए जब उसका नेतृत्व खतरा महसूस करने लगता है तब उस सत्ता की नैतिकता समाप्त हो जाती है, जैसा कि हम आज बांग्लादेश में देख रहे हैं और पाकिस्तान के कुछ प्रांत में और हमारे यहां कश्मीर और इसकी थोड़ी बहुत सुगबुआहट हमारे पूर्वोत्तर प्रांत में भी है, इसके मूल तत्व की जब मीमांसा करें तो हम देखेंते हैं कि जब आय का असमान बटवारा हो और व्यक्ति के संस्कृति के अनुकूल कार्य न किए जाएं ,समतावादी विचारों का ह्रास हो, पृथकतावादी शक्तियां आगे बढ़ने लगे, अनाधिकार चेष्टा करने वाले लोग अनाधिकृत रूप से धन इकट्ठा करने लगे, शिक्षा में नैतिकता और कर्तव्य परायण  घट जायऔर राष्ट्रवाद शून्य होने लगे, केवल तकनीकी और अर्थ कमाने की होड़ हो तब ऐसी स्थिति की नीव पड़ती है,यह नीव पड़े ही न इससे  बचना होगा।इसके लिए जो ठोस कारगर कदम हमें उठाने हैं वह मूलतः शिक्षा का क्षेत्र होगा परंतु  दुर्भाग्यबस नई शिक्षा नीति 2020 के आ जाने के बाद भी शिक्षा क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना है यद्यपि इस दिशा में बहुत सारे सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं और भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थापित करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है परंतु राष्ट्रवाद, विश्वबंधुत्व, समता समानता और आपसी भाईचारे के लिए अभी हमें धरातल पर बहुत कुछ करना होगा। दूसरा प्रयास है कि प्रत्येक व्यक्ति को कौशल विकास से जोड़ना होगा यद्यपि भारत सरकार इस वर्ष एक करोड़ लोगों को कौशल विकास से जोड़ना चाहती है और उन्हें 3 साल के प्रशिक्षण में ₹5000 प्रतिमाह प्रशिक्षण भत्ता भी देगी परंतु यह पर्याप्त नहीं है जब तक की भारत की इस युवा आबादी जो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है उसको रोजी-रोटी के पर्याप्त अवसर नहीं मिलेंगे तब तक वह अराजकता की तरफ घूमता चला जाएगा। हमें आपको इस स्वतंत्रता दिवस पर एक नागरिक होने के नाते राष्ट्रहित में,और संपूर्ण मानवता के हित में इसके लिए कुछ न कुछ करना चाहिए तभी इस दिवस की मनाने की हमारी सार्थकता सिद्ध होगी।एक बार पुनः आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना।

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