मुंबई में उत्तर भारतीयों की समस्याओं पर शिंदे सरकार की चुप्पी
मुंबई में उत्तर भारतीयों की समस्याओं पर शिंदे सरकार की चुप्पी
मुंबई, महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी और देश का सबसे प्रमुख शहरी केंद्र, विभिन्न राज्यों से आने वाले मजदूर वर्ग के लिए रोजगार और जीवनयापन का मुख्य केंद्र है। इनमें से अधिकांश उत्तर भारतीय हैं जो अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए यहां आते हैं। लेकिन हाल के समय में इन मजदूरों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की गठबंधन सरकार इन मुद्दों पर मौन दिखाई दे रही है।
ठेकेदारी प्रथा: मजदूरों का शोषण
मुंबई के विभिन्न उद्योगों और करखानों में काम करने वाले मजदूरों की प्रमुख समस्याओं में ठेकेदारी प्रथा है। कंपनी मालिक और ठेकेदार मजदूरों से 12 घंटे तक काम कराते हैं, जबकि उन्हें केवल 8 घंटे के वेतन का भुगतान किया जाता है। यह न केवल भारतीय श्रम कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि इन मजदूरों के अधिकारों की भी उपेक्षा करता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के मुंबई प्रदेश हिंदी भाषी अध्यक्ष मनीष दूबे ने उत्तर भारतीय मजदूरों की दयनीय स्थिति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि "मुंबई में उत्तर भारतीय लोग अधिकतर कंपनी, करखानों, रिक्शा, टैक्सी, टी स्टॉल और नाश्ता जैसे छोटे व्यवसायों से जुड़े हुए हैं। बढ़ती महंगाई और कम वेतन के कारण उनके लिए जीवनयापन करना बेहद मुश्किल हो गया है। सरकार को इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।"एनसीपी शरद पवार गुट के मुंबई प्रदेश महासचिव बाबू बतेली ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि "शिंदे सरकार उत्तर भारतीय मतदाताओं का केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती है, लेकिन उनके वास्तविक मुद्दों पर ध्यान नहीं देती।" यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति में एक गंभीर सवाल खड़ा करता है: क्या मुंबई में उत्तर भारतीय समुदाय को सिर्फ चुनावों के दौरान याद किया जाता है, या फिर उनकी रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी होगा?उत्तर भारतीय समुदाय की इन समस्याओं के बावजूद, मौजूदा सरकार की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है। जबकि मजदूर वर्ग महंगाई, रोजगार असुरक्षा और उचित वेतन की कमी से जूझ रहा है, सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। मुंबई के मजदूरों और खासकर उत्तर भारतीय समुदाय की इन चुनौतियों के मद्देनजर, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आने वाले समय में शिंदे सरकार इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करेगी, या फिर यह समुदाय हमेशा की तरह राजनीतिक खेल का हिस्सा बना रहेगा।
मुंबई के उत्तर भारतीय समुदाय के साथ हो रहा यह व्यवहार और उनकी समस्याओं की अनदेखी, सत्ता में बैठे दलों के प्रति उनके मनोबल को गिरा रही है। उत्तर भारतीय मजदूरों की मेहनत और संघर्ष को सम्मान दिलाने और उन्हें अधिकारपूर्ण जीवन देने के लिए सरकार को अब ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
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