कुमारगंज में एक निजी अस्पताल प्रशासन ने किया सील,सीएमओ के निर्देश पर हुई कार्यवाही
कुमारगंज में एक निजी अस्पताल प्रशासन ने किया सील,सीएमओ के निर्देश पर हुई कार्यवाही
जांच टीम को अस्पताल संचालक नहीं दिखा सका कोई कागजात
अदित न्यूज़ श्री न्यूज़ 24 अयोध्या
दल बहादुर पांडे ब्यूरो अयोध्या।
कुमारगंज नगर पंचायत क्षेत्र स्थित कस्बा कुमारगंज में अली हॉस्पिटल के नाम से संचालित प्राइवेट अस्पताल में बिना योग्य सर्जन के प्रसव पीड़ित महिला का ऑपरेशन कर प्रसव करने के दौरान नवजात शिशु की हुई मौत के मामले मे स्वास्थ्य विभाग एवं तहसील प्रशासन ने सोमवार को अस्पताल में भर्ती तीन मरीजों को निकटतम अस्पतालों में शिफ्ट करने के उपरांत सील कर दिया है। बताते चने की तिंदौली निवासी सोनू दुबे की पत्नी सुधा दुबे को परसों पीड़ा होने पर परिजनों ने कुमारगंज बाजार स्थित एक निजी अस्पताल में पहुंचाया था। जहां ऑपरेशन के तुरंत बाद नवजात शिशु की मौत हो गई और महिला की हालत गंभीर हो गई। इसके बाद सीएमओ डॉ संजय जैन हरकत में आए और उन्होंने पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खंडासा के अधीक्षक डॉ आकाश मोहन को मौके पर भेजा। अधीक्षक ने अस्पताल के संचालक से रजिस्ट्रेशन सहित अन्य आवश्यक कागजात मांगे, किंतु वह कोई भी प्रपत्र उन्हें नहीं दिखा सका इसके बाद तहसीलदार प्रदीप कुमार सिंह भी मौके पर पहुंच गए और उन्होंने तत्काल अस्पताल में भर्ती तीन मरीजों को एंबुलेंस बुलाकर उनके समुचित उपचार हेतु दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट कराया। इसके उपरांत तहसीलदार एवं सीएचसी प्रभारी खंडासा की मौजूदगी में अली हॉस्पिटल को सील किया गया। कार्यवाही में मौजूद सीएससी अधीक्षक ने कथित डॉक्टर को अस्पताल से संबंधित समस्त कागजात एवं समस्त शैक्षणिक अभिलेख सीएमओ के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के निर्देश दिए। कार्यवाही करने पहुंचे अधीक्षक डॉक्टर आकाश मोहन ने बताया कि बीएएमएस डिग्री धारक को अंग्रेजी दवा खाना खोलना सहित अस्पताल संचालन हेतु कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने बताया कि प्रथम दृष्ट्या अस्पताल पूरी तरह से अवैध है।
सोमवार को स्वास्थ्य विभाग व तहसील प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई पर उठ रहे सवाल
सोमवार को विवादों के घेरे मे आए कुमार गंज स्थित अली हास्पिटल को सील कर दिया गया। प्रशासन की इस कार्रवाई को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर काफी समय से संचालित हो रहा अली हास्पिटल किस की कृपापात्रता पर संचालित हो रहा था। स्वास्थ्य विभाग या तहसील प्रशासन ने अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की। गर्भवती महिला सुधा का गर्भ जब सात माह का था तो परिजन समय से पूर्व ही उसे किन परिस्थितियों मे निजी अस्पताल लाए। सरकारी अस्पताल भी ले जा सकते थे। परिजनों ने ऐसा क्यों नहीं किया। चिकित्सकों की मानी जाय तो सात माह का गर्भस्थ शिशु प्रसव के बाद एक प्रतिशत ही जीवित रहते हैं। ऐसे मे चिकित्सक पर सारा दोष लगाना कहाँ तक उचित है। जनपद मे लगभग एक सैकड़ा निजी अस्पताल झोलाछाप डाक्टर संचालित कर रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि उनके खिलाफ स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई करने से क्यों पीछे हट जाता है। स्वास्थ्य विभाग कभी अवैध रूप से संचालित किए जा रहे अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कराता।
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