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अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य का अक्षय फल होता है प्राप्त:आचार्य हिमांशु शुक्ल

 अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य का अक्षय फल होता है प्राप्त:आचार्य हिमांशु शुक्ल



काशी:काशी के प्रसिद्ध वैदिक आचार्य हिमांशु शुक्ल ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है।यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिये बेहद शुभ दिन माना गया है।धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना जाता है इसलिए इस दिन आंवले की पूजा का विशेष महत्व होता है आंवले के वृक्ष की पूजा के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं।इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने की भी परम्परा है।धार्मिक मान्यतानुसार अक्षय नवमी का वही महत्व है जो वैशाख मास की तृतीया यानी अक्षय तृतीया का है।शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य अक्षय फल देता है।ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन सतयुग का आरंभ हुआ था।आंवले की उत्पत्ति को लेकर कई धार्मिक पौराणिक मान्यताएं है।पद्म पुराण और स्कन्द पुराण के मुताबिक जिस तरह शिवजी के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई उसी तरह ब्रम्हा जी के आंसुओं से आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई।एक और मान्यता के मुताबिक आंवले को धातृ वृक्ष भी कहा जाता है।आंवले को धर्म का आधार माना जाता है। भगवान विष्णु को ये वृक्ष काफी प्रिय भी है।सृष्टि की सृजन के दौरान सबसे पहले आंवले का वृक्ष ही उत्पन्न हुआ था जिसके चलते आदिरोह या आदि वृक्ष भी कहा जाता है।

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