प्रिय का विछोह दुःखदायी होता है-प्रेमभूषण महाराज
प्रिय का विछोह दुःखदायी होता है-प्रेमभूषण महाराज
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प्रयागराज-आओ गायें रामकथा घर घर में.. इस आध्यात्मिक आंदोलन के प्रणेता, मानस के सिद्ध साधक, व्यवहार घाट के ओजस्वी प्रवक्ता,क्रांतिकारी संत पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज ने तीर्थराज प्रयाग महाकुंभ में चल रही अपनी श्रीरामकथा में सती प्रसंग के आश्रय में कथा सुनाते हुए कहा कि, त्रिभुवन गुरु भगवान शिव को प्रिय के विछोह में वैराग्य हो गया।ऐसा हम सब के जीवन में घटित होता है कि,जब कोई अपना प्रिय दूर होता है तब अच्छा नही लगता है।जिसके साथ हमारा मन जितना अधिक रमता है उसका विछोह भी उतना ही दुखदायी होता है।हमारी जिसमें प्रियता होती है उसका विछोह वैराग्य उत्पन्न करता है।इस परिस्थिति में भगवान का भजन ही काम आता है।जीवन का कोई भी अनुष्ठान विधि और निषेध को समझ कर ही करना चाहिए।कभी भी दूसरे के सत्कर्म में हिस्सेदारी नही माँगनी चाहिए क्योंकि सत्कर्म का फल केवल करने वाले को ही मिलता है।किसी भी अनुष्ठान को करते समय आचार, विचार,व्यवहार और आचार्य की शुद्धता अनिवार्य होनी चाहिए क्योंकि इसी से हमें इच्छित परिणाम की प्राप्ति होती है।अनुष्ठान की पवित्रता से भगवान प्रगट हो गए थे।
अपने प्रिय को अपनी दृष्टि अपने भाव से देखें, उसके बारे में किसी से कोई भी बुराई न सुने।पूज्यश्री ने कथा में उमड़े जनसैलाब को अपनी श्रीरामकथा के व्यवहार घाट पर अवगाहन करवाते हुए कहा कि, वैवाहिक रिश्ते हमेशा अपनी परिधि से 100 किलोमीटर के भीतर ही करना चाहिए क्योंकि इससे दूर जाने पर आहार, विहार, व्यवहार,देव पूजा पद्धति आदि में भिन्नता होने से समस्या उत्पन्न होती है।
विवाह आदि उत्सव अपने द्वार पर ही करना चाहिए, यह देहरी की मर्यादा है।अपने घर को छोड़ रिसोर्ट और दूसरे शहरों से विवाह करना मर्यादा के अनुकूल नही यह बंद होना चाहिए।
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