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श्रृंगवेरपुर की रामकथा में राजाभैया का उद्घोष।

 श्रृंगवेरपुर की रामकथा में राजाभैया का उद्घोष।


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प्रतापगढ़-कुंडा परानूपुर में लोकप्रिय स्थानीय विधायक कुँवर रघुराज प्रताप सिंह(राजाभैया) के संरक्षण, आनंद पाण्डे के संकल्प से पूज्य राजन महाराज के व्यासत्व में आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय रामकथा में कथा श्रवण हेतु पहुँचे राजाभैया ने व्यासपीठ को नमन करते हुए पूज्य राजन महाराज को माल्यार्पण करके स्वागत किया। कथा के पश्चात अपने उद्बोधन में राजाभैया ने कथा में उमड़े अपार जन सैलाब को संबोधित करते हुए कहा कि, सनातन धर्म पर मँडराते हुए खतरों पर  हिन्दू मौन है।आये दिन हम देख रहे हैं कि हमारे धार्मिक आयोजनों पर लगातार हमले हो रहे हैं,फिर चाहे दुर्गा पूजा हो,या हनुमान जन्मोत्सव हो। दक्षिण का एक राजनेता स्टालिन सनातन को मिटाने की बात करता है तो दूसरा ओवैसी का भाई 15 मिनट के लिए पुलिस हटाकर देख लेने की धमकी देता है और इसके बावजूद भी इन  पर कोई भी कड़क कार्रवाई नही की गयी और इनकी पार्टियां चुनाव में आज भी हिस्सा ले रही हैं। विश्व के सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत की विडम्बना है कि परमाणु शक्ति से सम्पन्न  और तीनों  सेनाओं से सुसज्जित भारत के  ही कश्मीर राज्य से 5 लाख कश्मीरी ब्राह्मणों को रातों रात पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया जो आज भी दर-दर   ठोकर खा रहे हैं।राजाभैया ने कहा कि,प्रतापगढ़ की भूमि पर पैदा हुए धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज द्वारा दिए गए जयघोष "धर्म की जय होऔर अधर्म का नाश हो" इस जयकारे को बोलने मात्र से धर्म की जय नही होगी। अधर्म का नाश हम को अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर स्वयं करना होगा। हमारे सभी देवी-देवता भी हमेशा शस्त्र युक्त रह कर यह संदेश देते हैं कि दुष्टों के संहार के लिए अस्त्र-शस्त्र भी आवश्यक है।राजाभैया ने तुलसीदास जी को स्मरण करते हुए कहा कि, रामचरितमानस की लोकभाषा अवधी में रचना करने वाले तुलसीदास जी एक बड़े संत ही नही  बल्कि बहुत बड़े साहसी व्यक्ति भी थे। यही कारण था कि,वामपंथियों द्वारा महान बताए गए सबसे बड़े आततायी अकबर के शासन काल में तुलसी ने मानस सहित अन्य ग्रंथों की रचना किया।अकबर के द्वारा बड़ी जागीर की भेँट और सम्मान प्रस्ताव को ठुकराते हुए उन्होंने धर्म की निष्ठा पूर्वक सेवा की,वहीं दूसरी ओर  हमारे समाज की बड़ी विडंबना यह भी रही कि, बहुत से हिंदुओं ने लोभवश अपना धर्म परिवर्तन कर लिया। इस पर आप सब  गहराई से विचार कीजिये,कि,यदि हम अभी से न चेते और मौन रहे तो राजन महाराज की इस भव्य रामकथा जैसे हमारे धार्मिक आयोजन भविष्य में कैसे संभव हो सकेंगे।धर्म स्थापना हेतु ही भगवान  राम इस धरा पर अवतरित हुए,सर्वस्व का त्याग करके भी वनगमन के समय रामजी ने अपने धनुष-बाण का त्याग  नही किया। रघुराज प्रताप सिंह ने हनुमान जी को स्मरण करते हुए कहा कि,रामत्व की अमर जय यात्रा के लिए हनुमान जी इस धरा पर आज भी विद्यमान हैं उन्हीं की प्रेरणा और शक्ति से हम  को  धर्म की जय यात्रा में शामिल होकर अधर्म  का नाश करना होगा।अंत में राजाभैया ने अवध की भूमि पर स्वागत करते हुए इतने बड़े आयोजन के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।रामकथा के मुख्य संकल्पी आनंद पांडे ने अपने साथियों के साथ राजाभैया का जोरदार स्वागत करते हुए धन्यवाद दिया।राजा भैया ने भी आनंद पाण्डे को इतने बड़े धार्मिक आयोजन की सफलता पर मंगल बधाई देते हुए आशीर्वाद दिया।

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