दस घंटे के भीतर कर्ज माफी के एलान का मतलब....
पुण्य प्रसून बाजपेयी
दस घंटे के भीतर कर्ज माफी के एलान का मतलब....
ना मंत्रियों का शपथ ग्रहण ना कैबिनेट की बैठक । सत्ता बदली और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही किसानो की कर्ज माफी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये । ये वाकई पहली बार है कि राजनीति ने इक्नामी को हडप लिया या फिर राजनीतिक अर्थशास्त्र ही भारत का सच हो चला है । और राजनीतिक सत्ता के लिये देश की इक्नामी से जो खिलावाड बीते चार बरस में किया गया उसने विपक्ष को नये संकेत यही दे दिये कि इक्नामी संभलती रहेगी पहले सत्ता पाने और फिर संभालने के हालात पैदा करना जरुरी है । हुआ भी यही कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ की सत्ता पन्द्रह बरस बाद काग्रेस को मिली तो बिना लाग लपेट दस दिनो में कर्ज माफी के एलान को दस घंटे के भीतर कर दिखाया और वह सारे पारंपरिक सवाल हवा हवाई हो गये कि राज्य का बजट इसकी इजाजत देता है कि नहीं । दरअसल , मोदी सत्ता ने जिस तरह सरकार चलायी है उसमें कोई सामान्यजन भी आंखे बंद कर कह सकता है कि नोटबंदी आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला था । जीएसटी जिस तरह लागू किया गया वह आर्थिक नहीं राजनीतिक फैसला है । रिजर्व बैक में जमा तीन लाख करोड रुपया बाजार में लगाने के लिये माग करना भी आर्थिक नहीं राजनीतिक जरुरत है । पहले दो फैसलो ने देश की आर्थिक कमर को तोडा तो रिजर्व बैक के फैसले ने ढहते इकनामी को खुला इजहार किया । फिर बकायदा नोटबंदी और जीएसटी के वक्त मोदी सरकार के मुख्यआर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रमणयम ने जब पद छोडा तो बकायदा किताब [ आफ काउसंल, द चैलेज आफ मोदी-जेटली इक्नामी ] लिखकर दुनिया को बताया कि नोटबंदी का फैसला आर्थिक विकास के लिये कितना घातक था । और जीएसटी ने इक्नामी को कैसे उलझा दिया । तो दूसरी तरफ काग्रेस के करीबी माने जाने वाले रिजर्व बैक के पूर्व गर्वनर रधुरामराजन का मानना है कि कर्ज माफी से किसानों की स्थिति में सुधार होना मुमकिन नहीं-------
दस घंटे के भीतर कर्ज माफी के एलान का मतलब....
ना मंत्रियों का शपथ ग्रहण ना कैबिनेट की बैठक । सत्ता बदली और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही किसानो की कर्ज माफी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये । ये वाकई पहली बार है कि राजनीति ने इक्नामी को हडप लिया या फिर राजनीतिक अर्थशास्त्र ही भारत का सच हो चला है । और राजनीतिक सत्ता के लिये देश की इक्नामी से जो खिलावाड बीते चार बरस में किया गया उसने विपक्ष को नये संकेत यही दे दिये कि इक्नामी संभलती रहेगी पहले सत्ता पाने और फिर संभालने के हालात पैदा करना जरुरी है । हुआ भी यही कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ की सत्ता पन्द्रह बरस बाद काग्रेस को मिली तो बिना लाग लपेट दस दिनो में कर्ज माफी के एलान को दस घंटे के भीतर कर दिखाया और वह सारे पारंपरिक सवाल हवा हवाई हो गये कि राज्य का बजट इसकी इजाजत देता है कि नहीं । दरअसल , मोदी सत्ता ने जिस तरह सरकार चलायी है उसमें कोई सामान्यजन भी आंखे बंद कर कह सकता है कि नोटबंदी आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला था । जीएसटी जिस तरह लागू किया गया वह आर्थिक नहीं राजनीतिक फैसला है । रिजर्व बैक में जमा तीन लाख करोड रुपया बाजार में लगाने के लिये माग करना भी आर्थिक नहीं राजनीतिक जरुरत है । पहले दो फैसलो ने देश की आर्थिक कमर को तोडा तो रिजर्व बैक के फैसले ने ढहते इकनामी को खुला इजहार किया । फिर बकायदा नोटबंदी और जीएसटी के वक्त मोदी सरकार के मुख्यआर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रमणयम ने जब पद छोडा तो बकायदा किताब [ आफ काउसंल, द चैलेज आफ मोदी-जेटली इक्नामी ] लिखकर दुनिया को बताया कि नोटबंदी का फैसला आर्थिक विकास के लिये कितना घातक था । और जीएसटी ने इक्नामी को कैसे उलझा दिया । तो दूसरी तरफ काग्रेस के करीबी माने जाने वाले रिजर्व बैक के पूर्व गर्वनर रधुरामराजन का मानना है कि कर्ज माफी से किसानों की स्थिति में सुधार होना मुमकिन नहीं-------
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