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'महिंद्रा रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया अवॉर्ड' 2023 से सम्मानित हुए डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी

'महिंद्रा रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया अवॉर्ड' 2023 से सम्मानित हुए डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी 



दीपक कुमार त्यागी / हस्तक्षेप

वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक 

छत्तीसगढ़ के बस्तर के डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी बने देश के सबसे अमीर किसान


बस्तर के आदिवासी भाइयों की बेहतरी लिए अपनी पूरी खेती और आमदनी को लगाकर जीवन की आखिरी सांस तक कार्य करूंगा : डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी


मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथियों तथा बस्तर की आदिवासी भाइयों को अपना अवार्ड किया समर्पित


दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)  पूसा के मेला ग्राउंड में आयोजित एक भव्य समारोह में कृषि जागरण द्वारा शुरू किए गए ‘महिंद्रा मिलेनियर फार्मर ऑफ इंडिया अवॉर्ड 2023 में छत्तीसगढ़ के राजाराम त्रिपाठी को केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने देश के सबसे अमीर किसान की ट्राफी देकर सम्मानित किया और उन्हें 'भारत के सबसे अमीर किसान' के खिताब से नवाजा । केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने इस अवसर पर कहा कि देश के किसान अब समृद्धि की राह पर चल पड़े हैं, इन सफल प्रगतिशील करोड़पति किसानों के बारे में जानकर हम सबको बड़ी प्रसन्नता हुई है। डॉ राजाराम त्रिपाठी जैसे उद्यमी किसान देश के किसानों के लिए रोल मॉडल हैं। इस अवसर पर ब्राजील के राजदूत ने डॉ राजाराम त्रिपाठी को अपने देश में आमंत्रित करते हुए ब्राजील यात्रा का टिकट भी प्रदान किया। इस अवसर पर ब्राजील के उच्चाधिकारी, नीदरलैंड के कृषि सलाहकार माईकल, संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत, ICAR के निदेशक, कृषि जागरण की प्रमुख एम सी डोमिनिक, शाइनी डोमिनिक डॉ. पीसी पंत, ममता जैन, पीसी सैनी, हर्ष राठौर, आशुतोष पांडेय हिंदुस्तान के साथ ही देश भर के कृषि वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र के उद्योगपति तथा सैकड़ो की संख्या में अलग-अलग राज्यों से पधारे प्रगतिशील किसान कृषि उद्यमी मौजूद थे। अवार्ड मिलने के बाद डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि वह अपना यह अवार्ड मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी साथियों तथा बस्तर के अपने आदिवासी भाइयों  को अर्पित करते हैं वे अपने समूह की आमदनी का पूरा हिस्सा बस्तर की आदिवासी भाइयों के विकास में ही खर्च कर रहे हैं और आगे इनके विकास के लिए एक ट्रस्ट बनाकर अपनी सारी खेती को उसके साथ जोड़कर आदिवासी भाइयों की बेहतरी के लिए अपनी आखिरी सांस तक कार्य करते रहेंगे । यूं तो जैविक खेती और औषधीय पौधों की खेती के पुरोधा माने जाने वाले डॉ राजाराम त्रिपाठी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। 

बी.एससी (गणित), एलएलबी के साथ  हिंदी-साहित्य, अंग्रेजी-साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान सहित पांच विषयों में एम. ए. तथा डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त डॉ त्रिपाठी को  देश का सबसे ज्यादा शिक्षित किसान माना जाता है। खेती में नये नये नवाचारों के साथ ही ये आज भी पढ़ाई कर रहे हैं और इन दिनों ये सामाजिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की परीक्षा दे रहे हैं।

 इन्हें हरित-योद्धा, कृषि-ऋषि , हर्बल-किंग, फादर ऑफ सफेद मूसली आदि की उपाधियों से नवाजा जाता है। मिसाइल-मैन कलाम ने इन्हें "हर्बल- मैन ऑफ इंडिया" की उपाधि दी थी।

देश के सबसे पिछड़े भाग बस्तर  में पिछले तीस सालों की उनकी कठिन तपस्या व संघर्षों के बारे में यह दुनिया बहुत कम जानती है। बस्तर के एक बेहद पिछड़े क्षेत्र, कुख्यात झीरम-घाटी वाले दरभा विकास खंड के गांव 'ककनार' में जन्मे तथा पले बढ़े डॉ त्रिपाठी का बचपन बस्तर के जंगलों में आदिवासी सखाओं के साथ गाय चराते और खेती करते बीता है। ये अपने गांव से प्रतिदिन 50 किलोमीटर साइकिल चलाकर पढ़ने के लिए जगदलपुर आते थे।

इन्होने अपने बूते पर  देश की  विलुप्त हो रही दुर्लभ वनौषधियों के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु बस्तर कोंडागांव में लगभग तीस साल मेहनत करके लगभग 10 एकड़ का जैवविविधता से भरपूर एक जंगल उगाकर वनौषधियों के लिए प्राकृतिक रहवास में ही "इथिनो मेडिको गार्डन" यानी की  "दुर्लभ वनौषधि-उद्यान"  विकसित कर दिखाया है,,, जहां आज 340 से ज्यादा प्रजातियों की 5100 दुर्लभ वनौषधियां फल-फूल रही हैं. 

    आईए जानते हैं डॉ त्रिपाठी की कुछ विशेष उपलब्धियां जो बस्तर छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश को गौरवान्वित करती हैं:-

👉* डॉ त्रिपाठी के नेतृत्व में "मां दंतेश्वरी हर्बल"  को आज से 22 साल पूर्व, देश के पहले "सर्टिफाइड आर्गेनिक स्पाइस एंड हर्ब्स फार्मिंग का अंतरराष्ट्रीय प्रमाण पत्र "हासिल करने का गौरव प्राप्त है। 

👉*दो दशकों से  अपने मसालों तथा हर्बल उत्पादों का यूरोप,अमेरिका आदि देशों में निर्यात में विशिष्ट गुणवत्ता नियंत्रण हेतु  'राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड' भारत सरकार  द्वारा  *"बेस्ट एक्सपोर्टर का अवार्ड"*  भी मिल चुका है. 

👉*डॉ त्रिपाठी दो दर्जन से ज्यादा देशों की यात्रा करके वहां की कृषि एवं विपणन पद्धति का अध्ययन कर चुके हैं* 

👉*डॉ. त्रिपाठी ने भारत सरकार के सर्वोच्च शोध संस्थान CSIR-IHBT के साथ करार कर जीरो कैलोरी वाली 'स्टीविया' की  बिना कड़वाहट तथा ज्यादा मिठास वाली प्रजाति के विकास करने और इसकी पत्तियों से  शक्कर से 250 गुना मीठी स्टीविया की "जीरो कैलोरी शक्कर" बनाने का  करार किया है।*

👉डॉ.त्रिपाठी ने  जैविक पद्धति से देश के सभी भागों में विशेष रूप से गर्म क्षेत्रों में भी न्यूनतम देखभाल में भी  परंपरागत प्रजातियों से ज्यादा उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता देने वाली  कालीमिर्च की नई प्रजाति "मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16, पीपली की नई प्रजाति "मां दंतेश्वरी पीपली -16"  एवं स्टीविया की नई प्रजाति  "मां दंतेश्वरी स्टीविया-16 आदि नई प्रजातियों के विकास का किया है बड़ी संख्या में किसान फायदा उठा रहे।इसकी सराहना स्पाइस बोर्ड के वैज्ञानिकों तथा देश के कृषि विशेषज्ञों ने भी की है।

👉*डॉ त्रिपाठी देश के पहले ऐसे किसान हैं,जिन्हें  देश के सर्वश्रेष्ठ किसान होने का अवार्ड अब तक चार बार , भारत सरकार के अलग अलग कृषि मंत्रियों के हाथों मिल चुका है।

👉*अब तक 7-लाख  से अधिक लहलहाते पेड़ उगाने वाले डॉ राजाराम को आरबीएस 'अर्थ-हीरो' (एक लाख की पुरस्कार राशि), ग्रीन-वारियर यानी हरित-योद्धा अवार्ड सहित कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड तथा की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं*

👉*हाल-फिलहाल में  इनके मार्गदर्शन में "मां दंतेश्वरी फार्म एंड रिसर्च सेंटर"  द्वारा  40 चालीस लाख में तैयार होने वाले  एक एकड़ के 'पाली-हाउस' का ज्यादा टिकाऊ, प्राकृतिक, सस्ता तथा हर साल पालीहाउस से ज्यादा फायदा देने वाला सफल और बेहतर विकल्प "नेचुरल ग्रीन हाउस" कोंडागांव मॉडल  मात्र "डेढ़ लाख रुपए" में,, जी- हां चालीस लाख के पाली हाउस का विकल्प मात्र डेढ़ लाख में तैयार किया है.. किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ाने वाले इस मॉडल ने तो पूरे देश में तहलका मचा दिया है। इसे देश की खेती का "गेम-चेंजर" माना जा रहा है साथ ही इस नेचुरल ग्रीन-हाउस को "क्लाइमेट-चेंज" के खिलाफ सबसे कारगर हथियार माना जा रहा है। 

👉उनके द्वारा स्थापित 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' के साथ अब इन परिवारों की दूसरी पीढ़ी भी कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहा रही है। इस नवयुवा पीढ़ी की अगुवाई कर रही इनकी बिटिया अपूर्वा त्रिपाठी जो कि 25 लाख का पैकेज ठुकरा कर बस्तर की आदिवासी महिला समूहों के साथ मिलकर यहां उगाए गए विशुद्ध प्रमाणित जैविक जड़ी बूटियों,मसालों, तथा उत्कृष्ट खाद्य उत्पादों  की श्रंखला " एमडी-बोटानिकल्स"  ब्रांड के जरिए  एक विश्वसनीय वैश्विक ब्रांड का तमगा हासिल कर चुकी हैं । इनके बस्तरिया उत्पाद अब  'फ्लिपकार्ट' तथा 'अमेजॉन' पर ट्रेंड कर रहे हैं।

👉यह भी उल्लेखनीय है कि बस्तर स्थित इनके हर्बल-फार्म जिसे ये किसान की प्रयोगशाला कहते हैं, पर अब तक माननीय महामहिम  राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद राज्यपाल श्री दिनेश नंदन सहाय मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी, अमेरिका, नीदरलैंड, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, इथोपिया सहित विश्व के विभिन्न देशों के कई माननीय मंत्रीगण, प्रतिनिधि गण, उच्चाधिकारी तथा वैज्ञानिक पधार चुके हैं।

👉इसके अलावा  देश के सभी भागों से आने वाले हजारों प्रगतिशील किसानों, स्कूलों के बच्चों तथा मेडिसिनल प्लांट के शोधार्थियों, वैज्ञानिकों,नवउद्यमी युवाओं के लिए इस किसान की प्रयोगशाला यानी कि इनका   "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर फार्म"  आज एक तीर्थ स्थल बन गया है।  इन सबका यहां निरंतर आना-जाना लगा रहता है। 

👉वर्तमान में... डॉक्टर त्रिपाठी "नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड" आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य हैं साथ ही भारत सरकार के "भारतीय गुणवत्ता संस्थान" BIS" की "कृषि-मशीनरी तकनीकी अप्रूवल कमेटी" के भी सदस्य हैं।

👉 डॉ त्रिपाठी "सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (चैम्फ) www.chamf.org " जो कि जैविक किसानों का देश का सबसे बड़ा संगठन है, उसके चेयरमैन हैं,

👉*डॉक्टर त्रिपाठी को हाल ही में देश के अग्रणी 223 किसान संगठनों के द्वारा बनाए गए "एमएसपी गारंटी-किसान मोर्चा" का "मुख्य राष्ट्रीय-प्रवक्ता" भी बनाया गया है।

👉*डा. त्रिपाठी वर्तमान में  देश के सबसे 45 पैंतालिस किसान संगठनों के पूर्णतः गैर-राजनैतिक मंच ,,"अखिल भारतीय किसान महासंघ ( आईफा)"   के 'राष्ट्रीय-संयोजक' के रूप में देश भर के किसानों की सशक्त आवाज के रूप में जाने जाते हैं*

👉खेती-किसानी में झन्डे गाड़ने से इतर,, आदिवासी बोली, भाषा और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए डा राजाराम त्रिपाठी का काम देश भर में उनकी अलग पहचान बनाता है। इनके द्वारा लिखी किताबों में "बस्तर बोलता भी है" और "दुनिया इन दिनों"  की गणना देश की चर्चित कृतियों में होती है। विगत एक दशक से दिल्ली से प्रकाशित हो रही जनजातीय सरोकारों की मासिक पत्रिका "ककसाड़" के जरिए, छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की विलुप्त हो रही बोली-भाषा, संस्कृति तथा सदियों के संचित अनमोल परंपरागत ज्ञान को संजोने, व बढ़ाने के काम में अथक जुटे  "कृषि-ऋषि" राजाराम त्रिपाठी को लोक संस्कृति का चलता फिरता ध्वजावाहक कहा जाना भी अतिशयोक्ति न होगा। इनका कार्य बहुत विषद और बहुआयामी है। इनके बारे में अगर और अधिक जानना हो तो कृपया गूगल पर जाएं गूगल बाबा के लायब्रेरी  में इनके ऊपर हजारों पेज आपको मिल जाएंगे।

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