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संविधान की मूल भावना के विरुद्ध किसी भी राजनीतिक दल द्वारा संविधान पर टिप्पणी करना न्याय संगत नही

 संविधान की मूल भावना के विरुद्ध किसी भी राजनीतिक दल द्वारा संविधान पर टिप्पणी करना न्याय संगत नही है।



लेख-प्रो. आर एन त्रिपाठी समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी


भारतीय लोकतंत्र में सर्वाधिक सम्मान और पवित्र भाव से लोक की रक्षा करने  के लिए कोई लिखित अधिकार प्राप्त व्यवस्था है तो वह है भारत का संविधान। इसमे भारत के नागरिकों की मूल आत्मा बसती है। इसमे नागरिकों के लिए मूल अधिकार, मूल कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्व ही नहीं बल्कि एक सामान्य नागरिक के जीवन में आने वाले समस्त आवश्यक उपागम जो सम्मानपूर्वक किसी व्यक्ति को जीने का अधिकार देते हैं,जैसा कि अनुच्छेद 21 में दिया गया है की चर्चा भारतीय संविधान में की गई है। भारतीय संविधान के परिवर्तन के  संदर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के कई उपबंधों में उसका वर्णन किया गया है और जिसके तहत अब तक बहुत सारे संशोधन भी संविधान में किए गए हैं।परंतु हाल ही के चुनाव के दिनों में ऐसा लगता है कि भारतीय संविधान की मूल आत्मा और भारतीय संविधान के परिवर्तन के मूल अनुच्छेद 368 की तरफ ना जाकर की यह परिवर्तन कैसे होता है ,कुछ लोग संविधान पर अनायास टिप्पणी और संविधान के साथ अनायास कुछ न कुछ वाद विवाद हर जगह पैदा कर रहे हैं।

इसी परिप्रेक्ष्य में कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा अभी हाल का जो निर्णय दिया गया और जिस निर्णय में स्पष्ट रूप से पश्चिम बंगाल सरकार को 118 मुस्लिम जातियों को ओबीसी का आरक्षण दिए जाने की बात को नकारा गया,और 2010 के बाद के इनको जारी सारे ओबीसी प्रमाणपत्र रदद् कर दिए जाने का आदेश दिया गया हैं, से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान की मूल आत्मा के साथ कहीं ना कहीं यह खिलवाड़ जान बूझकर किया जा रहा है।संविधान परिवर्तन एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसका संविधान में स्वयं उल्लेख किया गया है यह किसी राजनीतिक दल की कोई पूंजी नहीं है कि जो जब  चाहे उसे अपने हित अनुरूप पास कर ले और बदल लें, क्योंकि किसी परिवर्तन में केंद्र सरकार के साथ-साथ वहां के बहुमत के साथ-साथ दोनों सदनों के बहुमत तथा राज्य सरकारों की सहमति की भी आवश्यकता होती है। भारतीय लोकतंत्र में अभी किसी भी परिवर्तन पर महीने दो महीने लंबी बहस होती है और तब जाकर के बहुत से राज्यों की सहमति के आधार पर ऐसा जो परिवर्तन किया गया है,या अब तक जो भी परिवर्तन किए गए हैं वह सारे परिवर्तन लोकहित और लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए किए गए हैं। हाल ही में संविधान में एक परिवर्तन किया गया था जिसमें केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस, को संवैधानिक दर्जा दिया गया था उसके बाद कई प्रदेश की सरकारों ने अपने आप संविधान के मूल भावना के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। हाल ही में पश्चिम बंगाल की सरकार ने एक आयोग गठित किया और आयोग की सिफारिश के आधार पर पश्चिम बंगाल की सरकार ने एक वर्ग विशेष को ओबीसी के तहत आरक्षण की सहूलियत प्रदान कर दी,क्योंकि वह वर्ग विशेष उनका विशेष तौर पर वोटर था और जिसमे अधिसंख्य बंगलादेश इत्यादि से भागकर आया है,और वहाँ मनमाने ढंग से रह रहा है। इसे लेकर निश्चित रूप से टिप्पणी होनी थी और इसे लेकर के समाज में एक नई विभाजनकारी रेखा बननी ही थी। हमारी संविधान सभा के सदस्यों और संविधान के मूल रचनाकारों ने आरक्षण की व्यवस्था उनके लिए किया था विशेष करके जो समाज के मुख्य धारा से पीछे रह गए थे और जिन्हें सम्मान का वास्तविक हक नहीं मिला। एससी-एसटी के साथ मंडल आयोग की सिफारिश पर संविधान में 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए किया गया पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा इसी 27 परसेंट के आरक्षण पर कुठाराघात  किया गया और नई  व प्रवासी जातियों को बिना जांच परख के तुष्टिकरण के आधार पर उसमें शामिल कर लिया गया, परिणाम कोलकाता हाईकोर्ट ने निरस्त किया और भाजपा जैसे राजनीतिक दल को तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ एक बहुत बड़ा मुद्दा मिल गया ठीक इसी प्रकार कर्नाटक में भी कुछ हुआ दक्षिण भारत के भी दो-तीन राज्यों ने इसी प्रकार की कार्यवाही की और जिसको लेकर के पूरे   देश में अब यह चर्चा का विषय बन गया है।अगला प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसे परिवर्तन जब चुनाव आसन्न होते है तभी ऐसे परिवर्तन क्यों किए जाते हैं तो इसका एक सीधा सपाट उत्तर जनता के सामने स्पष्ट आता है कि वोटो के ध्रुवीकरण के लिए चाहे संविधान की मूल भावना हो, चाहे जनभावना हो, उसको चाहे जितना नोचा घसीटा जाए या उसे चाहे जितना विकृत किया जाए यह राजनेताओं को खुली छूट है,परंतु उन्हें यह वोध नही होता कि यही संविधान हमारे यहां उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की भी स्थापना किया है और यही न्यायालय यही न्यायपालिका ऐसे राजनेताओं को सबक सिखाने के लिए समय-समय पर आदेश भी देते रहते हैं,जैसा कि अभी कोलकाता उच्च न्यायलय द्वारा दिया गया । 

अभी भाजपा की विपक्षी पार्टियों द्वारा लगातार आरोप लगाया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी यदि अबकी बार सत्ता में आ गई तो वह संविधान बदल देगी प्रश्न यह है कि भारतीय जनता पार्टी संविधान की मूल भावना, संविधान की मूल ढांचे जो संविधान की सबसे बड़ी पीठ द्वारा केशवानंद भारती केस में कहा गया है की सदा अपरिवर्तनीय हैं, जिसमे समाज के क् मूल अधिकार है क्या उसको बदल सकती है उसको बदलने के लिए उसके पास अगर सदन में पूर्ण बहुमत है तो क्या राज्यों में भी उसके पास बहुमत है क्या भारत की जनता उसे स्वीकार करेगी।क्या न्याय पालिका चुपचाप मूकदर्शक बनकर देखती रहेगी,तो इसका एक मात्र उत्तर कदापि नही है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा विपक्षी आरोपों का खण्डन कई बार किया गया। माननीय प्रधानमंत्री जी, माननीय गृह मंत्री जी ने भी खण्डन किया है परंतु आरोप है कि निराधार समाज मे उछल ही रहे हैं,और नेताओं द्वारा उछाले ही जा रहे हैं।इसी के साथ-साथ एक और बड़ी हवा चल रही है विपक्ष द्वारा की नए कानूनों की असंगतता को लेकर के, 1860 में गठित आईपीसी और सीआरपीसी आज निश्चित रूप से निष्प्राण, निष्प्रयोज्य हो चुकी है आज उसमें परिवर्तन की आवश्यकता थी सरकारें आई, सरकारें गई लेकिन किसी ने इस पर विचार नहीं किया वर्तमान सरकार ने इस पर विचार किया और बड़े विशेषज्ञों के विशेष दल जिसमें न्यायाधीश वरिष्ठतम अधिवक्ता, विद्वान, समाजशास्त्री शामिल थे उसके आधार पर तीन नए कानून को जनता के सामने इजाद किया है अभी उन काननों पर बहस भी है, संभव है अगर उसमें कुछ आधारभूत ढांचे में कमी भी होगी तो सरकार द्वारा स्पष्ट कहा गया है उसमें परिवर्तन भी किया जाएगा लेकिन विपक्षी दलों द्वारा यह हवा उड़ाना की सरकार संविधान बदलने जा रही है निश्चित रूप से संविधान की खिल्ली उड़ाना है और समाज को ग़लत ढंग से दिकभर्मित करना है, ना कि केवल भाजपा की बुराई करना है और पढ़े-लिखे समाज पर जो संविधान के अनुच्छेद 368 से संविधानिक परिवर्तन की बात जानते हैं उनके लिए भी हास्यासपद बात होगी कि भाजपा इस प्रकार से परिवर्तन करेगी। 

मूलतः यह सारी बातें चुनाव के समय ऐसे ही धूमकेतु की तरह समाज में व्याप्त हो जाती हैं ऐसी बात बताने वाले ऐसी बातों की हवा उड़ने वाले यह नहीं सोचते कि समाज  का  एक बहुत बड़ा तपका आज भी अशिक्षित है उसे संविधान परिवर्तन के नियम कानून  नहीं पता है और वह उनके बहकावे में आ जाता है, उसे भय दिखाया जाता है जैसा कि आजकल बीजेपी के खिलाफ दिखाया जा रहा है कि यदि फिर भाजपा सरकार आयी तो संविधान बदल दिया जाएगा, आपका अधिकार ले लिया जाएगा, आपका आरक्षण दूसरे को दे दिया जाएगा। समाज के जो शिक्षित, चिंतक प्रबुद्ध वर्ग हैं अब उनका यह नैतिक दायित्व बनता है कि समाज के सामने राजनेताओं द्वारा जो ऐसे दुर्भावना पूर्ण विकृति भरे विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं इन विचारों को रोक लगाने के लिए इन विचारों का खंडन करने के लिए समाज के सामने आयें ताकि अभी ज्ञान से  वंचित वर्ग और समाज का वह तपका जिसके पास यह ज्ञान नहीं है उसे वास्तविकता से वोध कराया जा सके।

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