बिजली के निजीकरण का फैसला वापस ले सरकार
बिजली के निजीकरण का फैसला वापस ले सरकार
अदिती न्यूज श्री न्यूज 24 उत्तर प्रदेश
रिपोर्टर प्रवीण सैनी लखनऊ
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा
लखनऊ। अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा (एआईकेकेएस) उत्तर प्रदेश राज्य प्रभारी श्री कन्हैया शाही ने प्रेस को जारी बयान में सरकार से बिजली के निजीकरण का फैसला वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि पावर कार्पोरेशन के घाटे के कारण निजीकरण की दलीलें बेबुनियाद और जनता जनता के आंख में धूल झोंकने वाली है, ये कदम अदानी अंबानी और टोरेंटो जैसी कंपनियों के पक्ष में है। सरकार इसके लिए पिछले कई सालों से प्रयास कर रही थी, जो संयुक किसान मोर्चा और बिजली कर्मचारियों मजदूरों के कड़े विरोध के चलते सफल नहीं हो पाई। अब ट्रिपल पी के बहाने प्रथम चरण में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों को पूंजीपतियों को सौंपकर बिजली निजीकरण के काम को चालाकी से आगे बढ़ा रही है। जबकि ऐतिहासिक किसान आंदोलन के समय मोदी सरकार ने अन्य मांगों के साथ बिजली निजीकरण बिल को संयुक्त किसान मोर्चा से सलाह किए बगैर आगे न बढ़ाने के लिखित समझौते से मोदी सरकार मुकर गई है वहीं भाजपा की योगी सरकार सभी उपभोक्ताओं को 300 यूनिट फ्री और सिंचाई हेतु बिना शर्त फ्री बिजली देने के चुनावी वायदे से तो पीछे हट ही गई। उल्टा स्मार्ट प्रीपेड मीटर अनिवार्य करते हुए अब निजीकरण का फैसला ले लिया है। यह किसानों मजदूरों के ऊपर डबल इंजन सरकार का बड़ा हमला है।जहां तक बिजली के बकाया का प्रश्न है,2023 - 24 तक 1 लाख 10 हजार करोड़ का बकाया बताया जा रहा है, जबकि बिजली बिलों का बकाया 1 लाख 15825 करोड़ रूपए है।। जिसका बड़ा हिस्सा सरकारी दफ्तरों, इंडस्ट्रीज, पुलिस विभाग आदि पर है। अगर इसे वसूल कर लिया जाए तो भी 5825 करोड़ फायदे में रहेंगे बिजली निगम। उन्होंने कहा कि विद्युत नियामक आयोग के अनुसार पहले से ही 34 हजार करोड़ रुपए उपभोक्ताओं का निगमों पर निकलता है जो उपभोक्ताओं को नहीं दिया जा रहा है। एक और तथ्य है कि हाल ही में 55 हजार करोड़ रूपए बिजली आधुनिकीकरण के लिए सरकार द्वारा खर्च किया जा रहा है।
आजादी के बाद संसद में बिजली कानून पेश करते हुए बिजली मंत्री के रूप में डॉक्टर आंबेडकर ने कहा था कि बिजली सामाजिक जरूरत है। इसे सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा बिना लाभ हानि के सभी को मुहैया करानी होगी। अब मोदी योगी सरकारें बिजली के निजीकरण पर आमादा हैं। यहां यह गौरतलब है कि वर्ष 2000 में भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा जब विद्युत बोर्डों का विघटन किया गया था। तब उत्तर प्रदेश में 77 हजार करोड़ का घाटा था।।, जो 24 वर्षों में बढ़कर 1लाख 24 हजार करोड़ रुपए हो गया है। इससे स्पष्ट है कि घाटे के लिए सरकार की नीतियां और नौकरशाही जिम्मेदार है। एआईकेकेएस उत्तर प्रदेश राज्य प्रभारी ने योगी सरकार द्वारा बिजली विभाग में 6 महीने तक हड़ताल पर रोक की निंदा करते हुए किसानों मजदूरों, बिजली कर्मचारियों अधिकारियों और आम जनता से एकजुट होकर संघर्ष का आह्वान किया और निजीकरण रोकने, बिजली के संविदा कर्मियों को नियमित करने,300 यूनिट फ्री बिजली देने व फर्जी बकाया बिजली बिल माफ करने आदि की मांग किया
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