Click now

https://bulletprofitsmartlink.com/smart-link/41102/4

विकृत मानसिकता है संस्कृत भाषा का विरोध

 विकृत मानसिकता है संस्कृत भाषा का विरोध



डॉ. आदेश मिश्र 


इस समय देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में भारत के दो महान व प्राचीन नगरों को केंद्र में रखकर *काशी तमिल संगमम्* के तृतीय संस्करण का आयोजन किया जा रहा है। भारत भाषायी और सांस्कृतिक विविधता से संपन्न राष्ट्र है। ऐसे में 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' को लक्ष्य कर सरकार द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम राष्ट्र गौरव को उत्कर्ष प्रदान करने का सशक्त माध्यम है। इस आयोजन में तमिलनाडु से एक हजार प्रतिनिधियों को लाया जा रहा है। इस बार का आयोजन महान संत अगस्त्य जी की स्मृति को समर्पित है। इससे पूर्व के आयोजनों में तिरक्कुरल, मणिमेखलई जैसी तमिल शास्त्रीय ग्रंथों का बहुभाषी और ब्रेल लिपि में अनुवाद का शुभारम्भ, कन्याकुमारी- वाराणसी तमिल संगमम् ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर उत्तर-दक्षिण सूत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया गया था। काशी प्राचीन काल से संस्कृत भाषा, भारतीय शिक्षा और दर्शन का प्रतिनिधित्व करती आ रही है। यहाँ शास्त्र संरक्षण व शास्त्रार्थ परंपरा का संवहन काशी के संस्कृत मनीषियों द्वारा अधुनातन किया जा रहा है। वहीं तमिल भारत की प्राचीनतम और सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक है। यह न केवल द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है, बल्कि इसे भारत की शास्त्रीय भाषा  का दर्जा भी प्राप्त है। तमिल साहित्य को कई महान कवियों और संतों ने समृद्ध किया है, जिनमें तिरुवल्लुवर, अव्वयार, कंबन, सुब्रमण्य भारती जैसे नाम शामिल हैं। शैव और वैष्णव भक्ति आंदोलन के दौरान तमिल संतों ने भक्ति काव्य की रचना की, जिसने भारतीय समाज और धार्मिक परंपराओं को गहरे स्तर पर प्रभावित किया।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में सदैव इन प्राचीन भाषाओं का महत्व प्रकट करते रहते हैं। सभी संस्कृतभाषी अथवा भारतवासी इस सांस्कृतिक विविधता पर गर्व करते हैं। किंतु हाल ही में तमिलनाडु की वर्तमान सत्तासीन राजनीतिक दल द्रमुक द्वारा जब संस्कृत भाषा का विरोध किया गया तो समस्त संस्कृत सेवक हतप्रभ हो गए। अभी संसद का बजट सत्र चल रहा है जिसमें लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला जी द्वारा संसद के भाषणों का अनुवाद संविधान में मान्यता प्राप्त बाइस भाषाओं में किये जाने की घोषणा की। किंतु द्रविण मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) पार्टी के सांसद दयानिधि मारन संस्कृत भाषा में अनुवाद किये जाने का विरोध किया। उनके अनुसार संस्कृत भाषा में अनुवाद किया जाना टैक्स पेयर के पैसों को बर्बाद करना है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा जबरदस्त प्रतिकार करते हुए मारन को प्रत्युत्तर दिया गया कि यह भारत है और भारत की मूल भाषा संस्कृत रही है। सभी मान्यता प्राप्त भाषाओं में संसदीय कार्यवहियों का भाषांतरण  किया जाएगा। इसके लिए संस्कृत जगत माननीय ओम बिरला जी का अभिनंदन करता है।

देखा जाए तो इस राजनीतिक दल की बुनियाद ही सनातन, संस्कृत और भारतीयता के विरोध में पड़ी है। द्रविड़ आंदोलन से उपजी यह पार्टी सनातन और संस्कृत को आर्य बनाम द्रविड़ का वैर दिखाकर तमिल संस्कृति और भाषा का विरोधी मनाती आई है। जबकि तमिल और संस्कृत दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अपनी राजनीति चमकाने के लिए यह कहना कि संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रचार करना टैक्सपेयर के पैसे का बर्बाद करना है, यह सर्वथा अनुचित, निंदनीय और विकृत मानसिकता का परिचायक है। इस बयान से संस्कृत जगत में अत्यंत रोष व्याप्त है। किसी संस्कृत सेवक ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि क्या संस्कृतभाषी लोग टैक्स नहीं देते हैं? राष्ट्र के उन्नयन में संस्कृत सेवक गर्व से टैक्स भी दे रहे हैं यथाशक्ति सहयोग भी कर रहे हैं। विभिन्न संस्कृत विश्वविद्यालयों, संस्कृत महाविद्यालयों, पाठशालाओं, गुरुकुलों में संस्कृत भाषा का अध्ययन कर भारतीय संस्कृति को जीवन्तता प्रदान किए हैं। बल्कि यह कहें कि लाखों जीवन का पालन-पोषण संस्कृत भाषा के द्वारा हो रहा है। इस पार्टी के नेतृत्व में नई शिक्षा नीति- 2020 के उन बिंदुओं का विरोध किया गया था, जिसमें त्रिभाषा फार्मूला के अंतर्गत हिंदी संस्कृत को शामिल करने वाली बात थी। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम 2020 का भी विरोध इन विपक्ष के राजनीतिक दलों द्वारा किया गया था। जबकि वर्तमान में *केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय* संस्कृत जगत का नोडल केंद्र बना हुआ है। संस्कृत भाषा के प्रचार- प्रसार के लिए अनेक परियोजनाओं का परिचालन, विभिन्न व्याख्यानमालाओं का आयोजन, शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संयोजन, परंपरागत गुरुकुल पद्धति को आधुनिक विश्वविद्यालय प्रणाली से जोड़कर विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा प्रदान किया जा रहा है।साथ ही ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम, डिजिटल पुस्तकालय और संस्कृत भाषा सिखाने के लिए मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किए गए हैं।

संस्कृत ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से दुनियाभर के छात्र संस्कृत सीख रहे हैं ।अनेक शोधपीठों की स्थापना कर शास्त्र संरक्षण पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह सर्वविदित है कि संस्कृत भाषा में भारतीय संस्कृति का मूल तत्व प्रचुर रूप से विद्यमान है। यह हम संस्कृत सेवकों के लिए सौभाग्य है कि वर्तमान में केंद्र और देश के कई प्रदेशों में भारतीयता का समर्थन करने वाले दल का शासन है, जो ऐसे विकृत मानसिकता और राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त लोगों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए भारतीय भाषाओं और संस्कृति को उत्कर्ष प्रदान कर रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं