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वर्ण व्यवस्था की रचना व्यक्ति ने नही भगवान ने की है-प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज।

 वर्ण व्यवस्था की रचना व्यक्ति ने नही भगवान ने की है-प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज।


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बिहार-मुज़फ़्फ़रपुर,प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज के व्यासत्व में पानी टंकी चौक पर स्थित जनता कॉलेज परिसर में हरियाणा सेवासंघ द्वारा आयोजित नौ दिवसीय रामकथा में उमड़े जन सैलाब को प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण ने निवेदित किया कि

जो जिस भाव में रहता है वह उसी में स्तंभित हो जाता है।गरूण पुराण के अनुसार सत्कर्म करने वाले लोगों के पितरों का देवलोक में सम्मान होता है।अतः पितरों की प्रसन्नता और आशीर्वाद के लिए अपने वंश परंपरा के अनुसार सत्कर्म करते हुए जीवन जीना चाहिए, लेकिन  विडंबना यह है कि अब तो लोगों ने वंश की मान्यता को छोड़ ही दिया है ऐसे लोग जाति-पाति को अब समाप्त करने पर लगे हुए हैं ऐसे लोगों को यह जान लेना चाहिए कि यह उसके द्वारा नही बनाया गया है।वर्ण व्यस्था भगवान के द्वारा रचित है, इसी तर्क पर अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया।अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि युद्घ में पुरूषों की हानि होने से स्त्रियां उच्चश्रृंखल हो जायेंगी जिससे आपकी वर्ण व्यवस्था धराशायी हो जायेगी।अतः इस बात को सदैव स्मरण रखें कि मान्यताओं के बिना जीवन नही चलता।

प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि संसार में हर व्यक्ति अलग अलग वस्तु चाहता है किंतु भगवान के दरबार में जो आवश्यकता हो वही माँगना चाहिए।पीढ़ियों के लिए संग्रह करने के लिए कुछ ना मांगा जाये।जीव का स्वभाव उदार होना चाहिए।उदारता भगवान को प्रिय है,भगवान के श्रीमुख वचन हैं कि हम उदार वंश मे ही अवतार लेते हैं।

 जीव का कर्म उसके आचार,व्यवहार,विहार पर आधारित होता है। जीव को कम से कम सौ वर्ष तक जीना चाहिए इसके लिए नियम,संयम, व्रत, तप,सत्कर्म आदि आवश्यक होते हैं। लेकिन रुग्ण होने पर जीव की अवस्था कम हो जाती है।कलयुग के प्रभाव से जीव की आयु घटते घटते केवल 15 वर्ष ही रह जायेगी

 भगवान में प्रेम,रती और गति रखने वाले को ही भगवान मुक्ति प्रदान करते हैं।

प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज ने बाललीला प्रसंग का गायन करते हुए कहा कि संस्कार मय जीवन होने पर बच्चों के जीवन में विद्या,आयु,बल स्वयं उपस्थित हो जाते हैं।रामचरित्र जीवन जीने का चरित्र है और कृष्ण चरित्र केवल सुनने का चरित्र है।

प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज की रामकथा में मुनि विश्वामित्र का आगमन होता है।मुनि विश्वामित्र यज्ञ रक्षार्थ भगवान राम और लक्ष्मण को लेकर अपने साथ जाते हैं।भगवान राम और लक्ष्मण ने ताड़का, सुबाहु सहित सभी राक्षसों का वध करके गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से  अहिल्या उद्धार करते हुए गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला में प्रवेश करते हैं।

उल्लेखनीय है कि एकमेव प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज जी को अपनी अनूठी भाजनात्म रामकथा गायन शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है।उन्हेंअपने वैशिष्टय के अनुरूप भजनों के गायनऔर भाव भंगिमा से ही कथा प्रस्तुत करने  में महारत हासिल है,इसी भाव में प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण महाराज ने अपने कथा प्रवाह में "खेला करें हो खेला करें अंगनइया में रघुवर","राघव को मैना दूँगा"

 "शिव जी कागभुसिंडी लेके पोथी पत्रा" "कर्म करो  पर ध्यान रहे पथ छूटे ना",बधाइयां बाजे आँगने में"रंगीले राम लाला की बधाई हो","राघव को मै ना दूँगा" जैसे भजनों की झड़ी लगाकर रामकथा में उमड़े जनसैलाब को भावविभोर कर दिया।

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