लखनऊ सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया जुर्माना खारिज की जाति पुन वर्गीकरण की पी आई एल
लखनऊ सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया जुर्माना खारिज की जाति पुन वर्गीकरण की पी आई एल
अदिती न्यूज श्री न्यूज 24 पोर्टल यूट्यूब चैनल लखनऊ रायबरेली
संवाद दाता प्रवीण सैनी लखनऊ
नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने जाति व्यवस्था के पुनर्वर्गीकरण के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने मंगलवार को जाति व्यवस्था के पुनर्वर्गीकरण के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी कोर्ट ने एक वकील की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए याजिका कर्ता पर पच्चीस रुपये का जुर्माना भी लगाया
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है इस तरह की जनहित याचिकाएं बंद होनी चाहिए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद बातिश का आह्वान करते हुए केंद्र को जाति व्यवस्था के पुन: वर्गीकरण के लिए एक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है यह जनहित याचिका अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है हम इसे खारिज करते हैं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को पच्चीस हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश देते हैं
याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर भुगतान की रसीद पेश करनी होगी शीर्ष अदालत वकील सचिन गुप्ता की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें जाति व्यवस्था के पुन: वर्गीकरण के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी इससे पहले एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट नेचौदह मार्च को कहा था कि फैसले के वाद शीर्षक में किसी मामले में शामिल पक्षों की जाति का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए
सरल शब्दों में इसमें कहा गया है कि मामले में शामिल लोगों की जाति का उल्लेख केस फ़ाइल के नाम में करने की आवश्यकता नहीं है शीर्ष अदालत की यह सलाह तब आई थी जब वह बलात्कार के दोषी की सजा कम करने के खिलाफ राजस्थान राज्य बनाम गौतम हरिजन मामले की सुनवाई कर रही थी
राज्य सरकार ने राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी जिसने बलात्कार के दोषी की सजा को बरकरार रखा था उसकी उम्र कारावास की अवधि और पहली बार अपराधी होने जैसे कारकों के कारण उसकी सजा कम कर दी थी उस व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम पी ओ सी एस ओ दो हजार बारह अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी ठहराया था

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