Click now

https://bulletprofitsmartlink.com/smart-link/41102/4

मतदातओं की राज्यस्तरीय असन्तुष्टि पर केंद्र की कल्याणकारी योजनाए भारी

 मतदातओं की राज्यस्तरीय असन्तुष्टि पर केंद्र की कल्याणकारी योजनाए भारी  


लेख- प्रोफे. आर एन त्रिपाठी बीएचयू 

आज जब लोकसभा का अंतिम चरण का चुनाव संपन्न हो गया है तो मोटे तौर पर पूरे चुनाव का अगर लेखा-जोखा किया जाए तो इससे स्पष्ट होता है की बहुत सारे मतदाताओं ने अपने राज्य स्तरीय असंतुष्टि को नकार कर केंद्र में स्थाई सरकार बने इसके प्रति अपना मत व्यक्त किया है। इसके पीछे अगर मुख्य रूप से कारण देखा जाए तो केंद्र सरकार और विशेष करके मोदी का जनता से जो लगातार संवाद चला जो सबसे अधिक श्रृंखलाएं 'मन की बात' की और  विकास योजनाओं का उद्घाटन प्रदर्शन चला, जिसमें मोदी ने कभी राजनीति की बात या किसी दल की बुराई नहीं किया और विशेष करके युवा वर्ग की जो उपलब्धियां रही और किसी विशिष्ट क्षेत्र के युवा जो कार्य किए थे उनको ध्यान में रखकर उन्होंने अपने भाषण में सदा अत्यंत महत्व दिया यह बातें मुख्य रूप से मतदाताओं को घर घर मोदी पहुँच गये। दूसरी बात केंद्र सरकार की जो लोक कल्याण की स्थाई योजनाएं रही उन स्थाई योजनाओं के आधार पर केंद्र सरकार अपने को यह साबित करने में सफल हो गई कि उसके पास ही विकसित भारत का लक्ष्य है और जन जन के कल्याण के लिये योजनाएं भी है। यह साबित करने के लिये  वह पहले चुनाव के पूर्व ही अपना विकास का अगला रोड मैप देने लगे इससे जनता में एक विश्वास का भाव उत्पन्न हुआ कि यही एक सरकार है जिसके पास भारत के भविष्य का एक ताना-बाना ,और विकसित भारत  का आधारीय एजेंडा है। यदपि इस पर  विपक्ष द्वारा काफी प्रहार भी हुए परंतु भाजपा इससे विचलित नही हुई और अंततः इस पर सफल होती भी दिख रही है।विकास हेतु जातियों के विश्लेषण में कुछ जातियों को छोड़कर के यह कहा जा सकता है कि पिछड़ा वर्ग समस्त मोदी जी के नेतृत्व में विश्वास करते हुए भाजपा का समर्थन किया है निश्चित रूप से विपक्ष ने भी इस पिछड़े वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए आरक्षण समाप्त सरकार द्वारा कर दिया जाएगा इत्यादि का दांव चला परन्तु उस दांव को उल्टा कर भाजपा ने हिन्दू मतदाताओं का एक मात्र हितैषी अपने को सिद्ध कर दिया। विपक्ष का यह प्रलाप की अनायास लोगों को परेशान किया जाएगा यह सरकार स्थाई नहीं है,चार सौ पार् कौन कहे बहुमत  नहीं होगा ऐसी तमाम आशंकाएं विपक्ष द्वारा दिखाई गई लेकिन मोदी की जो रणनीति थी जिसमें मोदी ने महिला, गरीब, किसान, शोषित, वंचित वर्ग और युवा और उनके कल्याण और सशक्तिकरण की जिन योजनाओं को उन्होंने लागू किया था उनसे लाभान्वित होने वाले मतदाताओं को रिझाने में सफल हो गए। यह भी दिखाई पड़ा की  विपक्ष ने भी तीस लाख नौकरी देने का वादा और आरक्षण समाप्त करने की बात को भी गहराई से जनता में पहुचाया है,उसका परिणाम उत्तर प्रदेश में काफी कुछ असर   किया है परंतु उसका प्रभाव गैर हिंदीभाषी राज्यों के मत पर बहुत नही पड़ा। बिखरे विपक्ष के पास कुछ भी कार्य  ऐसे नहीं थे जिसको आधार बनाकर के वह जनता के सामने प्रस्तुत कर सकते थे। एक और पक्ष सबसे बड़ा रहा कि विपक्ष द्वारा कोई राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसा भाव नहीं प्रस्तुत किया गया जिसके आधार पर यह झलकता हो कि इंडिया के समस्त दलों का समर्थन और समस्त दलों का एक विचार ,एक पक्ष पर,  एक साथ हो, इसीलिए राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर जब जनता ने इस विपक्ष के गठबंधन को देखा तो उन्हें यह विपक्ष का गठबंधन मोदी की तुलना में काफी हल्का लगा। उत्तर प्रदेश जैसे दो-तीन राज्यों में जहां बहुजन समाज पार्टी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती थी वहां बीच में एक ऐसा दौर आया कि स्वयं इसकी मुखिया ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी को चुनाव के बीच से ही हटा लिया और उसका परिणाम यह रहा की पार्टी स्थिर पार्टी और स्थायी सोच का भाव जनता में नही प्रदर्षित कर पाई रूप से अपना प्रदर्शन कर पाई। विधानसभा चुनाव में पार्टी का जो प्रदर्शन था उससे अच्छे प्रदर्शन और रणनीतिक  टिकट देने के कारण  बीएसपी  प्रभाव भले न जमा सकेगी परंतु भाजपा को इसका फायदा अवश्य मिलता दिख रहा है। बार-बार टिकट परिवर्तन और उत्तराधिकार का परिवर्तन इस पार्टी को इस मुख्य लड़ाई में भी स्थापित नहीं कर सका। ममता बनर्जी द्वारा बार-बार यह कहा जाना को इंडिया गठबंधन के पक्ष में नहीं है यह भी साबित करता है कि इंडिया गठबंधन स्वयं में एक पूर्ण गठबंधन आज तक नहीं बन पाया है।   पंजाब में भी काग्रेस और अपना दल का अलगाव इसको और पुष्टि दिया।राममंदिर का मुद्दा केंद्र सरकार द्वारा बिल्कुल नहीं छोड़ा गया और अंततः नारा 'जो राम को लायें हैं हम उनको लाएंगे' आम जनमानस के बीच वह सिद्ध करने में लग रहे और उनके बड़े से बड़े नेता बार-बार अपने स्लोगन और अपने भाषण में यह बात सिद्ध करते रहे कहीं ना कहीं सामान्य लोगों के मन में यह भाव पड़ता चला गया। राम मंदिर के निर्माण, लोग जो दर्शन करने गए उनके मन में भाजपा के प्रति एक भाव अवश्य उठा और वह लाभ भाजपा को मिलेगा।इन सब के बावजूद कुछ ऐसी योजनाएं रही जिन योजनाओं के कारण विशेष करके महिला वर्ग जो आधी आबादी है जहां तक मैं समाजशास्त्री होने के नाते अपना विश्लेषण देख रहा हूँ वह यह था की महिलाओं में जो योजनाएं उज्ज्वला, राशन योजना, घरौनी, तीन तलाक, जननी सुरक्षा,आयुष्मान,  इन योजनाओं का प्रभाव महिलाओं में ज्यादा पड़ा और परिणाम यह हुआ कि महिला वोट जो बहुत कम पढ़ते थे आज इस लेख के लिखे जाने तक यह स्पष्ट हो गया है की महिलाओं ने बहुत विशेष रूप से इसमें भागीदारी किया और युवा वर्ग की जो भागीदारी रही विशेष करके पिछड़ा और अति पिछड़ा युवा वर्ग की वह भाजपा के पक्ष में ही ज्यादा दिखी। किसान आंदोलन से उपजे असंतोष ने पंजाब और हरियाणा में भले ही ने प्रभाव जमाया हो लेकिन किसान सम्मन निधि ने पूरे देश में भाजपा के समर्थन में कार्य किया है। हिंदी भाषा राज्यों में सवर्ण मतदाताओं में चाहे अनचाहे भाजपा का ही सर्वाधिक सशक्त समर्थन करने का भाव उभर करके आया है, उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के कारण और अन्य जगहों पर कोई और विकल्प न होने के कारण सवर्ण मतदाता भाजपा के ही पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं।  पन्थ और मजहब के आधार पर सारी पार्टियों ने मतदाताओं  के भाव को मोड़ने की कोशिश किया लेकिन अंतत पन्थ और मजहब का जो आधार था उस पर समर्थन पूर्व की तरह अपनी अपनी पार्टी के आधार पर बना रहा और कोई भी इसमें विशेष सेंध नहीं लग सका, परिणाम स्वरुप इंडिया एलाइंस भी मजबूत स्थिति अपनी पिछले चुनाव की तुलना में प्रदर्शित कर सकता है। जहां तक केंद्रीय नेताओं के पक्ष की बात रही तो मोदी जी ने सर्वाधिक रैलियां करके अपने को सबसे सशक्त साबित कर दिया उत्तर प्रदेश के प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में जाकर योगी जी ने अपने को सिद्ध किया और इन लोगों ने पूरे भारत को एक साथ बांधने की कोशिश किया,विपक्ष ने भी राहुल और प्रियंका,खरगे  तेजस्वी ने भी खूब प्रयास किया। अंतिम चुनाव के चरण में मोदी जी द्वारा जो साधना की गई उसे साधना से भी मतदान को साधने और विपक्ष को इस पर टिप्पणी करने का एक अवसर मिल ही गया ।अंतिम तक यह कहा जा सकता है कि सत्ताधारी दल की नीतियां समाज के प्रति बेहतर हैं भविष्य के समाज की प्रतिरक्षा वही कर सकते हैं उनके ही पास राजनीतिक दृष्टि है जो भारत का भविष्य निर्धारित कर सकती है ऐसी मनःस्थिति लेकर अधिकतर मतदाता कहीं न कहीं भाजपा के पक्ष में जाता दिखाई पड़ा, विशेष करके 2047 का विजन और आर्थिक विकास दर साढ़े छह  प्रतिशत से अधिक होने का अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का जो अनुमान है वह कहीं ना कहीं एक शिक्षित वर्ग में भाजपा के प्रति समर्थन करता हुआ दिखा। जहां तक समाज के सामने अपने विपक्ष को हल्का प्रदर्शित करने की रणनीति होती है तो वहां मोदी जी ने अखिलेश और राहुल को यूपी के दो लड़के बनाकर ही केंद्रित कर दिए और पश्चिम बंगाल जैसे जगह पर ममता जी को पूर्ण हिंदू विरोधी साबित करने की अपनी नीति में वह सफल हो गए। 

 इसी बीच में एक बड़ा दलबदल का दौर राजनीति में आया जिसमें जो भी भाजपा में आना चाहा और उसके पास अगर थोड़ा बहुत भी मत का समर्थन अधिकार प्राप्त था तो भाजपा ने उसे बड़े सहर्ष भाव से स्वीकार कर  लिया और छोटे-छोटे दलों की स्वीकारोक्ति के बाद एक विस्तृत मताधिकार उनके पास जा पहुंचा। यह भी अंततः  समीचीन  है कि  यह लड़ाई जातिवाद पर ही केंद्रित हो गई और जातिवाद में कुछ जातियों को छोड़कर बाकी अत्यंत पिछड़े और पिछड़ी जातियां भाजपा के साथ केंद्रित हुई और कुछ अन्य जातियां दूसरे दलों के साथ केंद्रित हुई सब मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह चुनाव फिर एक बार विकास को दूसरे नंबर पर जाति को प्रथम नंबर पर और प्रदेश की असंतुष्टियों को दरकिनार करते हुए केंद्र में स्थाई सरकार बनाने के भाव से संपन्न हुआ है,अंततः परिणाम तो 4 जून को ही आएगा

कोई टिप्पणी नहीं