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भारतीय आरक्षण व्यवस्था नौकर तैयार कर सकती है मालिक नहीं- पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

 भारतीय आरक्षण व्यवस्था नौकर तैयार कर सकती है मालिक नहीं- पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज



मुम्बई । किसी योग्य व्यक्ति के अधिकार का हनन करके हम आरक्षण के बल पर किसी को पद तो दे दे सकते हैं लेकिन उसे बुद्धि नहीं दे सकते हैं। आरक्षण की व्यवस्था से हम नौकर तो बना सकते हैं लेकिन मालिक नहीं। आरक्षण प्राप्त करने वाले को भी बाद में यह पता चलता है कि यह व्यवस्था उसके भी हित में नहीं है।  लेकिन वह भरत जी की तरह अनाधिकार मिले इस विशेष अवसर का त्याग करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।

उक्त बातें मुंबई महानगर के नालासोपारा स्थित नवदुर्गा ग्राउंड में आयोजित मानस महाकुंभ में श्री राम कथा का गायन करते हुए छठे दिन पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए  कहीं। 


सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने  भगवान के वन प्रदेशों की मंगल यात्रा से जुड़े  प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि आरक्षण की व्यवस्था में योग्य व्यक्ति को मौका न देकर अयोग्य व्यक्ति को योग्य होने का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है।

 पूज्य महाराज श्री ने कहा कि अगर हम कर्तव्य करते हैं तो अधिकार की प्राप्ति स्वतः ही हो जाती है लेकिन अगर  किसी को अनाधिकार कुछ प्राप्त हो जाता है तो उसे उसी समय सावधान होने की आवश्यकता होती है क्योंकि अनाधिकार कुछ भी जो प्राप्त होता है वह विष के समान है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त होता है । भैया भरत ने राजगद्दी इसीलिए नहीं संभाली क्योंकि राजगद्दी पर राजाराम का अधिकार था भैया भरत उस पर अपना अधिकार नहीं मानते थे।  यहां तक कि पूज्य गुरुदेव जी की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए भी उन्होंने गद्दी पर राजारामजी का ही अधिकार माना और राजारामजी का राज्याभिषेक करने के लिए वह सदल बल चित्रकूट की ओर रवाना हो गए।

पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि कैकयी माता को स्पर्श दोष लगा, तो रामजी का वनवास हो गया। मनुष्य को अपने जीवन में सदा गलत प्रवृत्ति के लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। क्षण मात्र का कुसंग भी जीवन भर के तप को नष्ट कर देता है। भगवान श्री राम को अपने भरत से भी ज्यादा प्रेम करने वाली कैकई माता को कुटिल बुद्धि वाली दासी मन्थरा का केवल स्पर्श दोष लगा था। माता के बुद्धि पलट गई और उन्होंने राम जी को 14 वर्ष के लिए वन में भेजने का वचन महाराजा दशरथ से ले लिया।

पूज्य श्री ने कहा कि आसुरी शक्तियों के समापन के लिए ही भगवान श्रीराम ने वन प्रदेश की मंगल यात्रा का कार्यक्रम खुद तय किया था। उन्होंने राज्य सत्ता संभालने से पहले आसुरी शक्तियों का काम तमाम किया। राम जी से हमारी युवा पीढ़ी को यही सीख लेने की आवश्यकता है कि युवा अवस्था में जो तपता है उसी का जीवन सफल होता है। आराम तलब युवा का जीवन खुद-ब-खुद अस्तव्यस्त हो जाता है। 

इसी प्रकार से मानस से हमें यह भी सीखने की जरूरत है कि उचित समय आने पर अपने अधिकार का तुरंत हस्तांतरण करना चाहिए। जैसे दशरथ जी ने राम जी को युवराज पद देने के बारे में सोचा था। उसी प्रकार प्रौढ़ावस्था आने के साथ ही व्यक्ति को योग्य उत्तराधिकारी को अपने अधिकार सौंपने के बारे में तुरंत निर्णय लेना चाहिए। राजा, सद्गुरु या किसी परिवार का मुखिया जब उचित समय पर अपने अधिकारों का हस्तांतरण कर लेते हैं तो शांति पूर्वक जीवन व्यतीत कर पाते हैं। जिसमें त्यागवृत्ति है वही सुखी रह पाता है।

हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोता गण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।

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